ईमानदार पुलिस अफ़सर: जब कर्तव्यनिष्ठा का इनाम मिला 'लाइन अटैचमेंट'

नमस्कार, मैं हूँ आकाश और आप देख रहे हैं सूरमा भोपाली। आज हम एक ऐसे पुलिस अफसर की कहानी लेकर आए हैं, जिन्होंने ईमानदारी और सख्ती के साथ अपने कर्तव्य का निर्वहन किया, लेकिन उन्हें इनाम के बजाय लाइन अटैचमेंट का सामना करना पड़ा। जी हां, हम बात कर रहे हैं छिपाबड़ थाने के थाना प्रभारी आरपी कवरेती की, जिन्होंने दो महीनों के अल्प कार्यकाल में अफीम, एमडी ड्रग्स, अवैध शराब, हत्या, डकैती, सट्टा और जुए जैसे संगठित अपराधों पर इतनी सख्त कार्रवाई की कि अपराधियों के हौसले पस्त हो गए और आम जनता ने राहत की सांस ली। कवरेती ने न केवल खामलाय डकैती के मुख्य आरोपी को मुंबई से गिरफ्तार कर जेल भेजा, बल्कि अंधे कत्ल का भी खुलासा किया और मादक पदार्थ तस्करों के खिलाफ लगातार अभियान चलाया।
इन सब उपलब्धियों के बावजूद, उन्हें विभागीय कारणों से बार-बार लाइन अटैच किया गया। सवाल उठता है कि जब कोई अफसर जनता का भरोसा जीतता है, पुलिस की छवि निखारता है और अपराधियों की कमर तोड़ता है, तो उसे पुरस्कार की जगह सजा क्यों मिलती है? क्या हमारे सिस्टम में ईमानदार और काबिल अफसरों के लिए कोई जगह नहीं बची है? छिपाबड़ और आसपास के क्षेत्र में आज यही चर्चा है कि आखिर ऐसे अफसर को लाइन क्यों भेजा गया, जिसने दो महीने में ही अपराध की जड़ें हिला दीं।
जनता का कहना है कि विभागीय कारण चाहे जो भी हों, लेकिन ऐसे जांबाज़ अफसरों का ट्रांसफर या लाइन अटैचमेंट पुलिस की विश्वसनीयता और जनता के भरोसे दोनों पर असर डालता है। सूरमा भोपाली पर हम ऐसे ईमानदार अफसरों को सलाम करते हैं और उम्मीद करते हैं कि सिस्टम भी अब ईमानदारी की कद्र करना सीखेगा। इसी के साथ दीजिए मुझे, आकाश को इजाजत। देखते रहिए सूरमा भोपाली, जहां सच कहने का साहस और सलीका हमेशा जिंदा है।