इलाहाबाद HC से अब्बास अंसारी को बड़ी राहत

इलाहाबाद HC से अब्बास अंसारी को बड़ी राहत

 

इस वक्त की सबसे बड़ी खबर आ रही है सीधे प्रयागराज से, जिसने उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बड़ा भूचाल ला दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जिसने मऊ की राजनीति का पूरा खेल ही पलटकर रख दिया हैये खबर जुड़ी है माफिया से नेता बने मुख्तार अंसारी के बेटे और मऊ सदर से विधायक अब्बास अंसारी से, जिनके लिए आज का दिन बहुत बड़ी जीत लेकर आया है। हाईकोर्ट ने उनकी उस दो साल की सजा को रद्द कर दिया है, जिसके चलते उनकी विधायकी चली गई थी। इस एक फैसले का असर इतना बड़ा है कि न सिर्फ अब्बास अंसारी की विधानसभा सदस्यता बहाल होने का रास्ता साफ हो गया है, बल्कि मऊ में होने वाला उपचुनाव भी अब टल गया है। ये फैसला अब्बास के राजनीतिक भविष्य के साथ-साथ पूर्वांचल की सियासत पर भी गहरा असर डालेगातो चलिए, सबसे पहले आपको बताते हैं कि हाईकोर्ट ने अपने इस ऐतिहासिक फैसले में कहा क्या है। आज, 20 अगस्त 2025 को, इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस समीर जैन ने अब्बास अंसारी की याचिका को मंजूर करते हुए निचली अदालत के फैसले पर रोक लगा दी। कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि मऊ की एमपी-एमएलए कोर्ट ने अब्बास को जो 2 साल की सजा और 3000 रुपये का जुर्माना सुनाया था, वह फिलहाल लागू नहीं होगा। ये कोई छोटी-मोटी राहत नहीं है, ये वो फैसला है जिसने अब्बास अंसारी के सियासी करियर पर लगे ग्रहण को हटा दिया है।

आपको याद होगा कि हाईकोर्ट ने 30 जुलाई को ही दोनों पक्षों की दलीलें सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब्बास अंसारी की तरफ से उनके वकील उपेंद्र उपाध्याय ने दमदार दलीलें दीं, जबकि योगी सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्रा और अपर महाधिवक्ता एम.सी. चतुर्वेदी ने इस याचिका का जमकर विरोध किया था। लेकिन आज जब फैसला आया, तो वो अब्बास के हक में था।इस फैसले का सीधा मतलब ये है कि अब्बास अंसारी अब फिर से विधायक कहलाएंगे। उनकी सदस्यता, जो 1 जून 2025 को खत्म कर दी गई थी, अब बहाल हो जाएगी। दरअसल, कानून ये कहता है कि अगर किसी विधायक को 2 साल या उससे ज्यादा की सजा होती है, तो उसकी सदस्यता रद्द हो जाती है। अब्बास के साथ यही हुआ था। लेकिन जब सजा पर ही रोक लग गई, तो सदस्यता रद्द होने का कोई आधार ही नहीं बचा। इसका दूसरा बड़ा असर ये है कि मऊ सदर सीट पर अब कोई उपचुनाव नहीं होगा।

 

अब सवाल उठता है कि ये पूरा मामला था क्या, जिसकी वजह से अब्बास अंसारी को इतनी लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी? इसके लिए हमें लौटना होगा साल 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में। तब अब्बास अंसारी, सुभासपा और समाजवादी पार्टी गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर मऊ सदर से चुनाव लड़ रहे थे।3 मार्च 2022 को एक चुनावी रैली में अब्बास ने मंच से एक ऐसा बयान दिया, जिस पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया। उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि अखिलेश यादव की सरकार आने दीजिए, 6 महीने तक किसी अफसर का ट्रांसफर-पोस्टिंग नहीं होगा, पहले सबसे "हिसाब-किताब" लिया जाएगा। ये वीडियो वायरल होते ही हंगामा मच गया और इसे सीधे-सीधे सरकारी अफसरों को धमकी माना गया।चुनाव आयोग ने इस पर तुरंत एक्शन लिया और इसे आचार संहिता का उल्लंघन मानते हुए अब्बास के खिलाफ मऊ कोतवाली में FIR दर्ज करा दी। उन पर IPC की धारा 153-ए (दुश्मनी को बढ़ावा देना), 189 (सरकारी कर्मचारी को धमकी देना), 506 (आपराधिक धमकी) और 171-एफ (चुनाव में गलत प्रभाव डालना) के तहत केस दर्ज हुआ। यही केस आगे चलकर मऊ की स्पेशल एमपी-एमएलए कोर्ट में पहुंचा, जहां 31 मई, 2025 को उन्हें 2 साल की सजा सुना दी गई।एमपी-एमएलए कोर्ट का फैसला आते ही अब्बास अंसारी पर मानो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। 31 मई को सजा सुनाई गई और अगले ही दिन, 1 जून को विधानसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता रद्द करके मऊ सीट को खाली घोषित कर दिया। अब्बास के लिए ये एक बहुत बड़ा झटका था, क्योंकि उनकी विधायकी छिन चुकी थी और सियासी भविष्य दांव पर लग गया था।लेकिन कानूनी लड़ाई अभी बाकी थी। अब्बास इस फैसले के खिलाफ मऊ के जिला जज की अदालत में गए, लेकिन 5 जुलाई को वहां से भी उनकी अपील खारिज हो गई। जब सारे रास्ते बंद दिखने लगे, तो अब्बास अंसारी ने आखिरी उम्मीद के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने हाईकोर्ट में एक रिवीजन पिटीशन दाखिल की और सजा को रद्द करके अपनी विधायकी बहाल करने की गुहार लगाई।हाईकोर्ट में ये लड़ाई काफी दिलचस्प रही। एक तरफ अब्बास के वकील थे, तो दूसरी तरफ राज्य सरकार के बड़े-बड़े वकील। तीखी बहस और दलीलों के बाद जस्टिस समीर जैन ने 30 जुलाई को फैसला रिजर्व कर लिया था, और आखिरकार 20 अगस्त को आए इस फैसले ने अब्बास को एक नई सियासी जिंदगी दे दी।अब बात करते हैं इस फैसले के राजनीतिक असर की, क्योंकि इसका असर सिर्फ कोर्टरूम तक सीमित नहीं रहने वाला है। अब्बास अंसारी को मुख्तार अंसारी का सियासी वारिस माना जाता है, और उनके लिए ये फैसला एक तरह का राजनीतिक पुनर्जन्म है।सबसे बड़ा असर तो मऊ सदर सीट पर पड़ेगा। विधायकी रद्द होते ही वहां उपचुनाव की तैयारी शुरू हो गई थी और सभी पार्टियां अपने-अपने समीकरण बिठाने में जुट गई थीं। लेकिन अब जब अब्बास की विधायकी बहाल हो जाएगी, तो उपचुनाव की सारी बातें खत्म हो गई हैं। ये फैसला ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा के लिए भी बड़ी राहत है, क्योंकि अब्बास ने उन्हीं के टिकट पर चुनाव जीता था और अब सदन में उनकी एक सीट वापस आ गई है।

 

लेकिन क्या ये लड़ाई यहीं खत्म हो गई है? शायद नहीं। सूत्रों के मुताबिक, योगी सरकार हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। अगर ऐसा हुआ, तो ये कानूनी लड़ाई और लंबी खिंच सकती है। लेकिन फिलहाल, अब्बास अंसारी ने एक बहुत बड़ी बाजी जीत ली है। ये फैसला एक बार फिर दिखाता है कि सियासत में कानूनी दांव-पेंच कैसे किसी नेता का करियर बना भी सकते हैं और बिगाड़ भी सकते हैं।इस पूरे घटनाक्रम पर आपकी क्या राय है? क्या आपको लगता है कि हाईकोर्ट का फैसला सही है? और क्या सरकार को इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देनी चाहिए? अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में लिखकर जरूर बताइए। सियासत और कानून से जुड़ी ऐसी ही बड़ी और दिलचस्प खबरों के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें।

तो कुल मिलाकर कहें तो, इलाहाबाद हाईकोर्ट का ये फैसला अब्बास अंसारी के लिए एक नई संजीवनी लेकर आया है। इसने न सिर्फ उनकी 2 साल की सजा पर रोक लगाई है, बल्कि उनकी छिनी हुई विधायकी भी उन्हें वापस दिला दी है। इस फैसले ने मऊ से लेकर लखनऊ तक सियासी पारा चढ़ा दिया है। अब सबकी निगाहें इसी पर टिकी हैं कि अब्बास अंसारी इस 'दूसरे मौके' को कैसे भुनाते हैं, और उनके विरोधी, खासकर राज्य सरकार, का अगला कदम क्या होता है।